'घर पर इंग्लिस मत बन'
दक्षिण अफ्रीका के कर्मठ हिन्दी सेवी, श्री हीरालाल शिवनाथ की पत्रकार सुनंदा वर्मा से ख़ास बातचीत
विश्व हिंदी सम्मलेन इस बार फिर मारीशस में आयोजित हो रहा है| विश्व हिन्दी दिवस हर वर्ष १० जनवरी को सारे विश्व में मनाया जाता है| विश्व हिंदी सम्मलेन और विश्व हिंदी दिवस दोनों के आयोजन का उद्देश्य हिन्दी की वैश्विक भूमिका को रेखांकित करना है| हिन्दी के वैश्विक स्वरूप के लिए जिन लोगों ने तन मन धन से निष्ठा पूर्वक हिन्दी की सेवा की है उन लोगों के विषय में आज हमें बहुत कम ज्ञात है| ऐसे लोग मौन रूप से हिन्दी की सेवा विदेश में अपनी संस्कृति तथा जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए निस्वार्थ भाव से करते हैं| उनकी हिंदी के प्रति निष्ठा हमें हिन्दी की सेवा के लिए प्रोत्साहित करती है| ऐसे ही दक्षिण अफ्रीका के कर्मठ और प्रतिष्ठित हिन्दी सेवी श्री हीरालाल शिवनाथ हैं| अपने दक्षिण अफ्रीका प्रवास में मेरा परिचय श्री हीरालाल शिवनाथ जी से हुआ जो लम्बे समय से वहां के हिन्दी शिक्षा संघ के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी की अलख जगाये हुए हैं| उनका यह साक्षात्कार हिन्दी प्रेमियों को हिन्दी सेवा के लिए प्रोत्साहित करेगा |श्री हीरालाल शिवनाथ (जन्म १९५२) एक गंभीर और निष्ठावान हिन्दी सेवी हैं। वह अपने देश में हिन्दी का विकास चाहते हैं और इसके लिए बिना किसी लाग लपेट के सीधी बात बोलते हैं| उन्हें आज भी याद है कि जब वे एक छोटे बालक ही थे वे हिन्दी सीखने के लिए रोज़ बहुत सुबह बीस किलोमीटर की यात्रा करते थे| सन १९४८ में दक्षिण अफ्रीका में हिंदी शिक्षा संघ की स्थापना करने वाले हिन्दी सेवी पंडित नरदेव विद्यालंकार के शिष्य, हीरालाल शिवनाथ कासंकल्प है कि दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी का अपना स्थान है और देश में उसके उचित और प्रभावी सम्मान के लिए वे निरंतर प्रयत्नशील रहेंगे ।
शुरुआती दिनों में हिन्दी से आप किस प्रकार जुड़े ?
मेरे आजा, यानि पिता के पिता भारत से आये थे| वे दक्षिण अफ्रीका सन १९११ के आस पास एक इंजीनियर के रूप में आये थे| वे 'सेज़ेला चीनी मिल' में काम करते थे| मेरे माता पिता दोनों का जन्म इसी देश में हुआ और हमारा सारा परिवार एक संयुक्त परिवार के रूप में एक साथ रहता था| रोज़ रामायण का पाठ परिवार की एक परम्परा थी|मेरी सभी बुआ और ताऊ की भाषा बहुत मधुर थी| वह भाषा भोजपुरी तथा खड़ीबोली का मिश्रित रूप थी| अपनी बात समझाने के लिए बीच बीच में वे कबीर के दोहे, तुलसी की चौपाइयां और दोहे तथा मीराबाई के पद भी कहते| इससे हम लोगों को अच्छा तो लगता ही, हम हिन्दी से जुड़े भी रहे|हम हिन्दी ठीक से सीख सकें और सही बोल सकें इस मामले में माँ बहुत सख्त थीं| वे कहतीं - 'घर पर इंग्लिस मत बन'। अपनी अस्मिता को बनाए रखने के लिए हिन्दी सीखना हम सब के लिए बहुत ज़रूरी था|उस समय ऐसा कुछ भी नहीं था कि हम तेलुगु हैं या हम तमिल हैं,हम सब साथ रहते थे और हिन्दी आपस में बोलते थे| मेरी उम्र पांच या छः साल रही होगी जब पिताजी ने मेरे लिए एक किताब 'बीरबल बादशाह' खरीदी| वे चाहते थे कि मैं उस किताब को पढूँ| उन्होंने मुझे हिन्दी स्कूल भेजा| जब मैं छठी कक्षा में था मेरे पैर में चोट लग गई और मुझे छः महीने बैसाखी का सहारा लेना पड़ा|मैं हिन्दी सीखता रहूं इसके लिए मेरे पिताजी ने एक टैक्सी का इंतज़ाम किया जो बहुत सबेरे घर आ जाती थी। साढ़े पांच बजे सुबह मुझे घर से ले कर २० किलोमीटर दूर हिन्दी अध्यापक के घर हिन्दी पढ़ने ले जाती। हिन्दी कक्षा सात बजे खत्म होती और टैक्सी ड्राईवर मुझे स्कूल पहुंचाता जो आठ बजे शुरू हो जाता था| उस समय परिवार में हिन्दी को इतना महत्त्व दिया जाता था| उन दिनों हिन्दी अध्यापक की छवि एक विशिष्ट सांस्कृतिक और धार्मिक व्यक्ति की होती थी | कहीं तो गाँव में एक हिन्दी अध्यापक मिल जाता था, और यदि गाँव में वह नहीं मिलता तो दूसरा गाँव जो १५ -२० किलोमीटर दूर होता वहां से साइकिल या कभी -कभी रेल गाड़ी की यात्रा कर वह अध्यापक हिन्दी पढ़ाने आता था| संगीत घर का अभिन्न अंग था| हर सप्ताह के अंत में लोग घर पर संगीत के लिए जमा होते| कोई सारंगी बजाता तो कोई तबला या हारमोनियम बजाता| कभी कभी तो नगाड़ा भी बजता| मैं बहुत भाग्यशाली था कि मैं एक सांस्कृतिक वातावरण वाले परिवार में पला बढ़ा। मेरे लिए परिवार में,दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी बहुत महत्वपूर्ण भाषा रही| हम केवल उसी परम्परा को बनाए रखना चाहते हैं |
छात्र से अध्यापक की भूमिका में आप कब आये?
हमारा, १२-१३ साल की उम्र के हिन्दी पढ़ने वाले बच्चों का एक ग्रुप था| हमने एक कमेटी बनाई और यह तय किया कि रामायण, गीता, रामनवमी खेलेंगे| सब मिलकर पड़ोसियों के घर गए| हर घर से चन्दा जमा किया और एक रोचक कार्यक्रम का आयोजन हुआ| सभी को कार्यक्रम में आने का न्योता दिया गया| हमने भी कार्यक्रम में भाग लिया| राम प्रसाद जीत नारायण चौधुरी ने अपने गुरु पंडित नरदेव वेदालंकार को मुख्य अतिथि के रूप में निमंत्रित किया| पंडित नरदेव वेदालंकार ने एक गैर-सरकारी संस्था के रूप में सन १९४८ में हिन्दी शिक्षा संघ की स्थापना की थी। संस्था का काम दक्षिण अफ्रीका के लोगों में हिंदी के प्रति रूचि को जागृत करना और बढ़ाना था| हिंदी शिक्षा संघ संगठित रूप में हिन्दी सिखाता था और हिन्दी का प्रचार प्रसार करता था| पंडित जी के ओजस्वी हिन्दी भाषण को सुनकर मैं रोमांचित हो उठता था| पुस्तकालय में काम करने के लिए पंडित जी को कुछ स्वयं सेवकों की ज़रूरत थी| मेरे शिक्षक ने कुछ अन्य छात्रों के नाम के साथ मेरा नाम भी उन्हें दे दिया| तब से हर शनिवार को मेरी उनके घर पर उनसे भेंट होती और हम दोनों साथ- साथ डरबन स्थित हिन्दी शिक्षा संघ के ऑफिस जाते| मैंने हाई स्कूल किया, यूनिवर्सिटी पहुंचा पर हर शनिवार की मीटिंग में कोई बदलाव न आया| वे अंग्रेज़ी नहीं जानते थे इसलिए मैं उनके लिखे का अनुवाद करता, उसे टाइप करता। संस्था कैसे चलाई जाती है इसके बारे में मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा | हम उनके मार्गदर्शन में काम करते और आज जो हम हैं,हमें बनाने का श्रेय उनको है |
दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी शिक्षण की चुनौतियाँ क्या हैं?
शिक्षण के क्षेत्र में शुद्ध अकादमिक दृष्टि का मैं हिमायती नहीं हूँ| अपने देश में प्राथमिक, प्रवेश कोविद आदि की हमें क्या आवश्यकता है? मैं अपने छात्रों से कहता हूँ कि जब तुम क्लास में आओ तो परीक्षा की बात भूल जाओ| हम पाठ्यपुस्तकों का प्रयोग अपने अनुभवों को समझने और समझाने के लिए ही करेंगे| मेरा मानना है कि यदि कोई हिन्दी पढ़ सकता है, लिख सकता है और बोल सकता है तो समझिये हमने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है| मैं छात्रों को बताता हूँ कि देवनागरी इसलिए आवश्यक है क्योंकि इससे शुद्ध उच्चारण सीखने में मदद मिलती है| यही वह बिंदु है जहाँ मेरा अपने हिन्दी शिक्षा संघ के डरबन साथियों से मतभेद है| हम एक ऐसे मोडयूल खोजने की कोशिश कर रहे हैं जिसका हम दक्षिण अफ्रीका के सन्दर्भ में अनुकूलन कर सकें और जो हमारी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति भी कर सके| मुझे लगता है कि इस देश के लोग हिंदी इसलिए सीखना चाहते हैं क्योंकि वह उनकी अस्मिता को बताने वाला एक माध्यम है| बहुत लोगों को घर में बोली जोने वाली भोजपुरी बोलने में शर्म आती थी। उस भाषा को 'अइली -गइली' या 'किचन लैंग्वेज' कहा जाता था| जब घर में कथा या पूजा के लिए पुरोहित आता था अचानक पुरोहित की भाषा को श्रेष्ठ भाषा के रूप में देखा जाने लगता। अब लोग यह समझने लगे हैं कि हिन्दी केवल ‘अइली-गइली’ भाषा नहीं है वह बालीवुड की भाषा भी है| मुझे लगता है कि अब जब माता पिता अपने बच्चों को रामायण, गीता का पाठ करते हुए देखते हैं तो बहुत खुश होते हैं| हमारा वार्षिक उत्सव 'आइसटेडफोड' जो हाउटेंग में आयोजित होता है वह बच्चों और बड़ों सभी में हिन्दी के प्रति उत्साह का सच्चा दर्पण है|
दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी के प्रसार के लिए भारत आपकी सहायता किस प्रकार कर सकता है ?
भारत की दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी के प्रचार प्रसार में बड़ी भूमिका है| भारत को चाहिये कि वह अपनी 'अंतर राष्ट्रीय सहयोग राशि' जिसके माह्यम से वह हमारे हिन्दी शिक्षकों के मार्ग दर्शन के लिए नियमित रूप से हर साल अपने अनुभवी हिन्दी भाषा शिक्षकों को भेजता है, उस पर ध्यान दे| लक्ष्य प्राप्ति के लिए हमें मिल जुल कर काम करना होगा| हमें भारत के उच्चायोग का, भारतीय कौंसुल का सहयोग प्राप्त है, महात्मा गांधी अंतर राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा से भी हमारी बातचीत चल रही है पर हमारे लिए आवश्यक है कि जो सहयोग हमें मिले या दिया जाए वह दक्षिण अफ्रीका की आवश्यकताओं को देखकर दिया जाए, जो हमारे काम आये| मारीशस से हमारे पुराने और मजबूत सम्बन्ध हैं और हम हिन्दी के लिए अक्सर अनेक योजनाओं पर मिलकर काम भी करते हैं |
दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं ?
मैं एक आशावादी व्यक्ति हूँ, मुझे लगता है कि इस देश में हिन्दी के विकास के लिए हम बहुत कुछ कर सकते हैं| अगर हम हिन्दी पढ़, लिख और बोल सकें तो समझिये हमने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया| मैं यह जानता हूँ कि हमारे बहुत से साथी मेरी बात से सहमत नहीं होंगे| वे चाहते हैं कि हिन्दी की परीक्षाएं हों, प्रमाण पत्र दिए जाएँ। पर यदि हमारे कोविद पास बच्चे हिन्दी में बातचीत न कर पायें तो क्या फ़ायदा| हिन्दी एक खूबसूरत भाषा है और वह हमारी भाषा है| यहाँ पाठशालाएं हैं, सुविधायें हैं, हमें उन्हें सक्रिय करना है कि वे अपना काम करें| हमें ऐसे हिंदी शिक्षक चाहिए जिनका भाषा सिखाने का अनुभव हो| हमें यह देखना होगा कि हम कैसे नई प्रभावी शिक्षण सामग्री तैयार कर सके या उपलब्ध सामग्री को कैसे आसान और उपयोगी बना सकें जो हमारे देश और परिवेश के सन्दर्भ में हों| हमारे बच्चों के लिए रोचक और संगत हो सकें| हमें यह सोचना चाहिए कि जो बड़े- बड़े हिन्दी के व्याकरण ग्रन्थ उपलब्ध हैं क्या हमारे देश में हिन्दी सीखने के लिए वे काम आ सकेंगे| दक्षिण अफ्रीका में हिन्दी के सन्दर्भ में सब कुछ निराशाजनक ही नहीं है, आशा की किरण भी हमें दिखाई देती है |